पुराण काल की बात है लक्ष्मी रुठकर (अप्रसन्न होकर) पृथ्वी से वैकुंठ धाम को चलीगयी। जिसके कारण पृथ्वीपर अनेक समस्याए उत्पन्न हुई। वसिष्ठ ऋषि माता लक्ष्मी को पृथ्वी पर लाने का निश्चय कर वैकुण्ठ (विष्णु लोक) गये। किंतु उन्हें सफलता नही मिली। उसके बाद वसिष्ठ ऋषि ने तपस्या शुरु की और भगवान विष्णु का आह्वाहन किया। भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने वसिष्ठ ऋषि के साथ महा लक्ष्मी के प्रसाद (गृह) में प्रवेश किया। वहां महा लक्ष्मी की प्रार्थना की। किंतु माता लक्ष्मी ने पृथ्वी पर न जाने का अपना निश्चय दृढ रखा। वसिष्ठऋषि दुखी मन से पृथ्वी पर लौट आये और सभी के सामने एक बात का निवेदन किया, कि अब श्रीयंत्र निर्मिति के (शिवाय) बिना दूसरा कोई रास्ता बचा नहीं है। इसप्रकार उन्होंने अपने आश्रम में दीपावली के पूर्व धनत्रयोदशी के दिन विधि- विधान से श्रीयंत्र की प्राण प्रतिष्ठा की। देवों के गुरु बृहस्पति जी ने वसिष्ठ ऋषि को श्रीयंत्र निर्मिति का ज्ञान एवं उसकी उपासना का क्रम बताया था। उन्हीं के निर्देशों के अनुसार श्रीयंत्र की निर्मिति हुई। श्रीयंत्र की षोडशोपचार पूजा होते ही महा लक्ष्मी अपनी सभी सिद्धियों के साथ श्रीयंत्र रूपी सिंहासन पर प्रकट हुई.। महा लक्ष्मी ने सभी को आशिर्वाद दिया । उसने कहा कि -आप लोगो ने जो श्रीयंत्र का प्रयोग किया है उससे मै प्रभावित हुई हूँ, मै इस श्रीयंत्र में अखण्ड रुप में निवास करुंगी ।
जिनके घर में विधि पूर्वक श्रीयंत्र की स्थापना हुई हो उन्हें सपरिवार श्रीयंत्र की आराधना भक्ति पूर्वक अंतःकरण से करनी चाहिए । सुबह स्नानादि से शुचिर्भूत होकर श्रीयंत्र के सामने नंदादीप (दीपक ) लगाकर आसन पर बैठना चाहिए। न्यास , संकल्प एवं ध्यान करके श्रीयंत्र की पंचोपचार पूजा करनी चाहिए। पूजा पूर्ण होने के बाद श्रीललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पठन कर कुंकुमार्चन करना चाहिए। उसके बाद बीज मंत्र का जप करना चाहिए। जप के बाद आरती एवं क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। शाम को भी धूप-दीप प्रज्ज्वलित कर नैवैद्य(भोग) लगाना चाहिए। श्रीयंत्र को नित्य स्नान विधि , अभिषेक की आवश्यकता नहीं है.। केवल पौर्णिमा के दिन ललिता सहस्र नाम स्तोत्र से अभिषेक अथवा केवल जल से शुचिर्भूत होकर स्नान कराना चाहिए। ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ एवं कुंकुमार्चन करना चाहिए। जिस घर में श्रीयंत्र की स्थापना एवं ललितासहस्रनाम स्तोत्र का पाठ तथा कुंकुमार्चन होता है उस घर में ललिता स्त्रिपुरसुंदरी का निश्चित ही निवास होता है इसे ध्यान में रखना चाहिए।
श्रीयंत्र साधना से व्यापार वृद्धि , ऋण मोचन, संतान लाभ , दरिद्रता नाश, अपार धनसंपदा, भौतिक सुखसम्पदा, और अदभुत ऐश्वर्य सिद्धि प्राप्त होती है.। अत्यंत प्रभावी इस श्रीयंत्र के कारण घर में सुख समृद्धि रहती है ।सभी प्रकार के भय का नाश होता है। विद्या, शक्ति, यश , मान-सम्मान ,ऐश्वर्य और सकल समृद्धि प्राप्त होती है। श्रीयंत्र साधना संकटों से मुक्ती एवं यश समृद्धि की ओर जानेवाला राजमार्ग है। सुबह -शाम की पूजा में श्रीयंत्र पर किसी भी प्रकार के अभिषेक की आवश्यकता नहीं है-नित्य कुंकुमार्चन ही देवी का (श्रीयंत्र का) अभिषेक है।
पिछले कुछ वर्षो से श्रीअशोक काका कुलकर्णि जानकारी पूर्ण लेख सोशल मिडिया पर पोस्ट करते आरहे है प्रस्तुत श्रीयंत्र की जानकारी उन्हीं की पोस्टसे हिंदी में अनुदित है- वासुदेव महाडकर
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