1 9 9 6 में लिखी ये मेरी कविता हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ --
-ः दिवाकर ः-
नित्य दिवाकर आता उसकी थी बस एक समस्या ।
वर्ष नहीं, कुछ युग - युग बते करता रहा तपस्या ।।
हौले -हौले जब भी आता रजनी भागखडी होती।
बन जोगी वह दिनभर ढूंढे ,जाने कहां थी वह सोती ।।
कठिन तपस्या देख नित्य की , उठे स्वयं भगवान तभी ।
रजनी से मिलकर कह डाली युग- युग बात सभी।
सुनकर बात प्रभू की रजनी, सोच- सोच फिर द्रवित हुई।
अश्रु बहाती रजनी दिवाकर में यूं आज विलीन हुई ।।
वासुदेव महाडकर-
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