- सद् बुद्धि और दुर्बुद्धि एक चिंतन -
सद् बुद्धि और दुर्बुद्धि जैसे शब्दों का प्रयोग हम सभी अपने अपने व्यवहार में हमेशा ही करते हैऔर यही समझते हैकि सद् बुद्धि का अर्थ हैअच्छी बुद्धि तथा दुर्बुद्धि का अर्थ है दुष्ट बुद्धि या खराब बुद्धि। जब की अच्छाई-बुराई सापेक्ष और मानने पर अवलंबित होती है।इस प्रकार सद् बुद्धि और दुर्बुद्धि के वास्तविक अर्थ का ज्ञान न होने के कारण हम इन शब्दों का प्रयोग केवल स्थूल रुप में ही करते है। संत ज्ञानेश्वर महाराजने अपने द्वारा लिखे ग्रंथ ज्ञानेश्वरी के कुछ श्लोकों में सद् बुद्धि तथा दुर्बुद्धि के सूक्ष्म अर्थ पर दृष्टिपात किया हैजो वास्तव में बोधप्रद तथा मनन करने योग्य है। संत ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरी में लिखते है--दिये की ज्योति छोटी होती है किंतु उसका प्रभाव बहुत बडा होता है। उसी प्रकार सद् बुद्धि अल्प हो तो भी उसे अल्प नही कहना चाहिये ।वह अत्यंन्त सुखदायक होती है।
केवल शब्दों के आडंबर से अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन करने वाले चिंतक इस जगत में बहुतेरे हैं किंतु उन्हें इस चराचर जगत के सत्य का ज्ञान कभी नहीं होता । वह दुष्प्राप्य है।
पत्थर बहुतसे मिलेंगें किंतु पारस दुष्प्राप्य है । पारस या अमृत बिंदु बहुत अधिक पुण्य कर्म करने वाले को ही प्राप्त होता है।
उसी प्रकार सद् बुद्धि दुर्लभ है । संपूर्ण चराचर विश्व भगवन्मय है ऐसी बुद्धि ही सद् बुद्धि है । जिस प्रकार गंगा को सागर में मिलने से कृतकृत्यता या सार्थकता प्राप्त होती है। उसी प्रकार बुद्धि को परमात्मा से एकात्म्य स्थापित करने से सार्थकता प्राप्त होती है।
हे अर्जुन, इस जगत में जिसे परमेश्वर से दूसरा कुछ भी नहीं दिखता वही सद् बुद्धि है। ईश्वर से अलग संसार को देखने वाली दुर्बुद्धि है। उसी के कारण राग- द्वेश , लोभ - मोह, आदि विकार उत्पन्न होते हैं और उसी में अविवेकी लोग सदैव लिप्त रहते हैं ।
इसीलिए हे अर्जुन , वे संसार में स्वर्ग- नर्क आदि काल्पनिक सुख - दुख रुपी जाल में फँसे रहते हैं । उन्हें आत्मसुख का दर्शन कभी नहीं होता।
उपर्युक्त अमृत बिंदुओं से स्पष्ट है कि सद् बुद्धि का अर्थ है आत्मबुद्धि । वह हितकारी होती है। आप पर भाव (द्वैत भाव) उत्पन्न करने वाली अनात्म बुद्धि (आत्मा से परे ) अर्थात वह दुर्बुद्धि है । उससे सदैव बचना चाहिए । अतः अब हम भी महाप्रभु से यही प्रार्थना करेंगें-
दुर्बुद्धि ना उपजे मेरे मानस हृदय पटल पर ।।
इतना हो आलोक हमेशा जीवन के इस पथ पर ।।
------वासुदेव महाडकर। -----
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