Monday, 20 February 2017

                                                        श्रद्धवान लभते ज्ञानम्                                                                               कोई भी कार्य श्रद्धा से करे तो वह ज्ञान प्राप्ति मे कारण बनता है और वह श्रद्धावान ज्ञानी होता है |यह श्रद्धा अन्ध श्रद्धा हो तो भी चलेगी या वह तर्क संगत होनी ही चाहिये इसका निर्णय करना थोडा साहस का कार्य होगा ,क्योकि अन्ध श्रद्धा से भी संत ज्ञान के अधिकारी हुए ,यह बात प्रसिद्ध ही है |किसी समय ऐसा भी होता है कि चिकिस्सा [तर्क संगति ] करते हुए श्रद्धा डगमगा ने लगती है और  ऐसा ही कुछ प्रकार सत्यनारायण व्रत के विषय मे मेरा हुआ | बचपन से कई बार सत्यनारायण की कथा सुनी और ऐसी श्रद्धा भी थी कि स्कन्द पुराण के रेवा खण्ड मे इसका विधान है किन्तु ब्रह्मिभूत नारायण महाराज केडगावकर इनके यहा जब अहोरात्र {अखण्ड }सत्यनारायण सप्ताह हुआ उस समय वैकुण्ठवासी नागेशशास्त्री उप्पिनबेटगिरी जी ने इस व्रत की प्रामाणिकता बताते हुए ऐसा विधान किया कि -भलेही विद्यमान रेवाखण्ड मे सत्यनारायण व्रत दिखता न भी हो तो भी लुप्त होगये भाग मे वह है |इसे सुनने के बाद मन मे सन्देह उत्पन्न होकर विद्यमान रेवाखण्ड मे दुसरे कुछ और व्रतो का विधान है कि क्या ? इसे जानने की जिज्ञासा हुई |उसके बाद काफी दीनो तक पुस्तक ही उपलब्ध नही हुई | आगे परम् पूज्य  काणे महाराज जी के यहा 18पुराणोके प्रवचन के समय उपर्युक्त जिज्ञासा का समाधान प्राप्त होगा ,यह सोचकर आनन्द हुआ |  किन्तु क्रमप्राप्त स्कन्द पुराण के रेवाखण्ड के प्रवचन के बाद वह अस्तन्गत हुआ क्योकि रेवा अर्थात नर्मदा और उसके वर्णन का खण्ड, जिसमे किसीभी व्रतका विधान नही था ; इसलिये प्रचलित सत्यनारायण व्रत को प्रमाण नही मिला | संयोग से हुआ यह कि पुराण समाप्ति के बाद परम् पूज्य  काणे महाराज जी के यहा सत्यनारायण पूजा के समय कथा बताने की मुझे अाज्ञा हुई | देखता हू तो प्रत्यक्ष भविष्य पुराण के कुछ पृष्ठ वहा व्यासपीठ पर रखे हुए थे  उसे देखकर प्रसन्नता हुई | अब सारी संगति जुडचुकी थी कि भविष्य पुराण के विधान को किसीने सामान्य रुपान्तरण करके प्रमाणिक्ता के लिये उसे स्कन्दपुराण से जोड दिया | उसी समय मनमे फिर दुसरी चिन्ता सताने लगी कि यह प्रामाणिक कथा छपकर लोगो के सामने आनी चाहिये | किन्तु यह मेरे लिये असंभव था | आगे कभी स्कन्द पुराण की कथा पढने के समय मनमे दुःख होकर , " सत्यनारायण जी !आपकी वह सत्यकथा लोगोंके सामने लाइये " ऐसे बोल रिह्दय में समय -समय पर निकलनेसे ही [समष्टिभूत ] सत्यनारायण स्वरुपी ब्रह्मचैतन्य स्वामी महाराज जी ने अपने एकनिष्ट भक्त परमपूज्य काणे महाराज जी को प्रेरित किया और उसी प्रेरणा के फलस्वरुप यह प्रामाणिक सत्यकथा परमपूज्य काणे महाराज सत्यनारायण भक्तोंको सादर प्रस्तुत कर रहे हैं । इसीलिए प,पू ,काणे महाराज प्रेरक श्री १ ० ८ ब्रह्मचैतन्यमूर्ति स्वामी महाराज एवं सर्वान्तरयामी तथा सर्वनियंता सत्यनारायण इन सबको शतशः प्रणाम करके यह निवेदन पूर्ण कर रहा हूँ। 
                                                                                                            -   केशव श्रीधर करंबेळकर   
                                                                 मराठी से हिन्दी अनुवाद _ वासुदेव चिन्तामणि महाडकर 
मुंबई- आषाढ़ शु ० ११ -१८८३ सोमवार 
दिनांक २४ /७ /६१  














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