बचपन की यादें ,जिन्होंने होली पर लिखने के लिए प्रेरित किया, वर्ना अब कहाँ होली और होली के वो रंग -??---
==आओ! खेलें हम तुम संग ==
लायी होली फिरसे रंग ,
आओ! खेलें हम तुम संग
लाल गुलाबी हरा बसंती ,
इंद्रधनुष-सी धरा की कान्ति,
नर नारी में भरी उमंग
आओ ! खेलें हम तुम संग
लायी होली फिर से रंग ।
यह भीग रहा है पूरा तन
हर्षोल्लास से भरा है मन ,
छोड़ द्वेष मिलने दो अंग ।
अबीर गुलाल का उठा धुआं
धुंधलाता है सारा जहाँ।,
देख इसे सब रहगए दंग ।
यह मौसम भी है सजा -सजा
बस पीने का है आज मजा
हर -हर बोलो, औ पियो भंग
आओ !खेलें हम तुम संग
लायी होली फिर से रंग ।
____ वासुदेव चिं महाडकर
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